प्रश्न यह नहीं है कि ताजमहल किसका है. वह आज भी देश का है और कल भी देश का ही रहेगा.
प्रश्न यह है कि इसका सही इतिहास क्या है? प्रश्न यह है कि यह झूठ हमसे किसने और क्यों बोला? प्रश्न यह है कि हमें झूठा इतिहास पढ़ाने वाले लोगों ने और क्या क्या झूठ बोले हैं और ये झूठे लोग आज भी हमारे शिक्षण संस्थानों में क्या कर रहे हैं?
हमें सच जानना है और अपने इतिहास का सच जानना हमारा अधिकार है. अगर यह सच है तो यह पढ़ाओ स्कूलों में कि ताजमहल पहले राजा मानसिंह का महल था जिसे शाहजहां ने छीना और बाद में वर्षों तक रोमिला थापर और इरफान हबीब जैसे कम्युनिस्टों ने उसे मुगल आर्किटेक्चर और प्यार की निशानी बताया.
ताजमहल भारत में इस्लामिक आक्रांताओं के आतंक का और कम्युनिस्ट इतिहासकारों के झूठ का प्रतीक है. ताजमहल भारत में इतिहास के साथ हुए बलात्कार का प्रतीक है. और इतिहास न्याय मांगने आपके दरवाजे पर खड़ा है मी लॉर्ड…
बस, खैर मनाइए…आज इतिहास न्याय मांग रहा है, सुन लीजिए. कल को जब इतिहास न्याय करेगा तो बहुत महंगा पड़ेगा.