चित्र को ध्यान से देखिये जिसमें अमेरिकी सैनिक एक ढांचे की रखवाली कर रहे हैं।
यह ईराक में टिग्रिस नदी के किनारे स्थित एक पुरावशेष है। हाल ही में 2015 में आईएसएस के आतंकियों ने इन पुरावशेषों को क्षतिग्रस्त किया था।
इस खंडहर का हमारे पौराणिक इतिहास से गहरा संबंध है।
यह है- असुरलोक की राजधानी का दरवाजा।
जी हाँ, असुरों का ‘असुरलोक’ जिससे निकलते थे असुर आर्यावर्त और सुमेरु अर्थात पामीर स्थित देवलोक पर आक्रमण हेतु।
हम ज्यादातर लोगों के मस्तिष्क में ‘असुर’ शब्द सुनते ही एक छवि उभरती है- ‘नुकीले दांत, भद्दा डरावना चेहरा, आबनूसी रंग और हो.. हो..हो करती डरावनी हंसी।
पर क्या असुर वस्तुतः ऐसे ही थे जबकि वे तो देवों में से ही एक थे, ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न।
कौन थे दैत्य व दानव और उनका असुरों से क्या संबंध था?
क्या वे एक ही थे??
या अलग-अलग थे????
उनकी देव सभ्यता से क्या शत्रुता थी????
इनका भारत स्थित ‘असुर जनजाति’ से क्या संबंध था?????
क्या पुराण भी इनका वही इतिहास बताते हैं जो आधुनिक आर्कियोलॉजी बताती है??????
और सबसे बड़ी बात क्या वे आज भी हैं?
हाँ, वे आज भी हैं। अपने असुर इतिहास पर गर्व है उन्हें।
पुराणों में उनके साम्राज्य को कहा गया असुरों का ‘असुर साम्राज्य’ और आधुनिक इतिहास कहता है ‘असुरों का असीरियन साम्राज्य’ जिनकी कभी हुकूमत चलती थी समुद्रों पर।
आज इन शक्तिशाली असुरों की भव्य राजधानी के खंडहर बताते हैं कि पौराणिक इतिहास कोई चमत्कारिक कहानियां नहीं बल्कि पूरे विश्व का वास्तविक इतिहास है जिसका केन्द्र था–भारतवर्ष
जानिये अपने भव्य अतीत को।
पुराणों की चमत्कारिक घटनाओं से इतर जानिए अपने वास्तविक मानवीय इतिहास को और अपने बच्चों को बताइये ताकि वे हिंदू इतिहास पर किये जा रहे प्रहारों का वैज्ञानिक ऐतिहासिक तर्कों द्वारा मुकाबला कर सकें न कि चमत्कारिक गप्पों द्वारा।