Home विषयविदेश Elone Musk Brought The Twitter | इलोन मस्क ने ट्विटर को ख़रीदा | Praarabdh.in

Elone Musk Brought The Twitter | इलोन मस्क ने ट्विटर को ख़रीदा | Praarabdh.in

Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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इलोन मस्क ने अंततः ट्विटर को ख़रीद लिया. और ख़रीदते ही पहला काम किया गया पराग अग्रवाल समेत कई सारे टॉप एग्जीक्यूटिव को नौकरी से निकाला. निकाला भी कैसे गया – सिक्योरिटी गार्ड भेज दिया गया, आपकी सेवा समाप्त उठिये निकलिए. नहीं नहीं बाय बाय करना मिलना नहीं, गार्ड साथ में है बाहर तक धकेल आएगा. कल्पना कर देखिए एक मिनट पहले तक इतनी बड़ी कंपनी के सीईओ थे और अगले ही पल ऐसी बेज्जती से निकाले जा रहे हैं.

 

वैसे यह बिलकुल अनोखी बात नहीं. अमेरिकन कल्चर में इस तरह से निकाला जाना बहुत कॉमन है. फ़्राइडे को ऑफिस में बॉस ने बोला वाओ. ब्रेवो. ऑसम. यू आर द मैन. मंडे को ऑफिस में पिंक स्लिप चिपकी है. बोरिया बिस्तरा उठा चुपके से कट लीजिए अन्यथा अभी गार्ड आकर निकालेगा.

 

एक्चुअली यदि पराग अग्रवाल और इलान मस्क के बीच का ई मेल पढ़ें समझ आ जाएगा – इलान पूरी तरह से ऐग्रेसिव पुशी अमेरिकन बिज़नस मैन हैं. और पराग ट्विटर को बिलकुल आराम आराम से देशी कंपनी जैसे चला रहे थे. एक बार परेशान होकर या ऐसे ही पराग ने लिख दिया कि मुझे बॉस नहीं इंजीनियर समझिए. इलान ने बोला वेरी गुड. ये हुई बात. अगले हफ़्ते बोलता है तुम यूजलेस हो, इंजीनियर हो तो दिखाओ एक सप्ताह में क्या काम किया. उसका खूब मजाक उड़ाया कि तुम छुट्टी पर थे हवाई में ऐश कर रहे थे जब तुम्हारी कंपनी बिक रही थी. इण्डियन मैनेजमेंट तरीक़ा होता है कि मैनेजर / टॉप बॉस से ऐसे बात नहीं करते हैं. वह बताएगा कि पूँछ कर बताते हैं. अमेरिकन वे में यह सब ऐक्ज़क्यूज़ नहीं चलते हैं. आमने सामने बैठ ज़िम्मेदारी ले ख़ुद जवाब देना होता है नहीं तुरंत निकाल दिया जाता है.

 

अभी इलान ने कंपनी ख़रीदी है खरबों रुपये में, बड़ी बात नहीं कल से वह नौ बजे से प्रोग्रामर बन कर ख़ुद बैठ जाये. वीपी से पूँछे ये कोड में फ़लानी लाइन कहाँ मिलेगी. उसे चेंज करने में तुमने इतना टाइम और सौ लोगों की टीम ली. फ़ायर. जाओ बस्ता उठाओ घर जाओ. और फिर इलान ख़ुद बैठ कर टेस्ला से अपने कुछेक विश्वास पात्र बुला कर पंद्रह दिन तक दिन रात प्रोग्राम लिखता रहे और ट्विटर का काया कल्प कर डाले.
एक्चुअली काम ऐसे ही होते हैं, बाक़ी सब बातें होती हैं. कोई भी कंपनी हो, कितनी भी बड़ी हो जाये उसके प्रोडक्ट सीईओ के ब्रेन चाइल्ड होने ही चाहिए. भारत में भी रतन टाटा ख़ुद कार की डिजायन तक में लगते थे और टाटा की ही नई गाड़ी चलाते थे. नारायणा मूर्थी तो अपनी कंपनी का बैनर ख़ुद कील हथौड़ा लेकर गाड़ने लगते थे – तब जब वह खरब पति थे. इसी लिये इन सबकी ग्रोथ रही. प्रायः टॉप पर पहुँच या ऐसे भी सामान्य लोगों को लगता है पैसा फेंको तमाशा देखो, बिज़नस पैसे से चलता है. चल जाते हैं कुछेक क़िस्मत से. अन्यथा चलते वही बिज़नस हैं जिनके मालिकों में इलोन मस्क / नारायणा मूर्थी जैसी लगन होती है. बाक़ी का हश्र पराग अग्रवाल जैसा होता है.

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