Home लेखक और लेखराजीव मिश्रा Intellectual_Hero : फ्रेडरिक अगस्टस वॉन हायेक | प्रारब्ध

Intellectual_Hero : फ्रेडरिक अगस्टस वॉन हायेक | प्रारब्ध

लेखक - राजीव मिश्रा

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फ्रेडरिक अगस्टस वॉन हायेक
(8 मई 1899 – 23 मार्च 1992)
ऑस्ट्रिया में जन्मे फ्रेडरिक हायेक, जो बाद में ब्रिटिश नागरिक बने, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रहे, और दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शिकागो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से जुड़े. 1974 में उन्हें इकोनॉमिक्स के लिए नोबेल मेमोरियल प्राइज मिला जो पाने वाले वे पहले गैर वामपंथी सोशलिस्ट- विरोधी इकोनॉमिस्ट थे.
हायेक ने दोनों विश्वयुद्ध देखे (पहला युद्ध लड़ा भी) और वे एक ऐसे इंटेलेक्चुअल वातावरण में बड़े हुए जहां गैर वामपंथी होना एक चमत्कार से कम नहीं था. सौभाग्य से उन्हें एक दूसरे ऑस्ट्रियाई लीजेंड इकोनॉमिस्ट वॉन माइसेस का मार्गदर्शन मिला. लेकिन अपने शुरुआती दिनों तक अपने समय के अन्य इंटेलेक्चुअल्स की तरह वे भी अच्छे खासे सोशलिस्ट थे.
जब हायेक इंग्लैंड पहुंचे तो उस समय इकोनॉमिक्स की दुनिया में अंग्रेज इकोनॉमिस्ट जॉन मेनार्ड केन्स का डंका बोलता था. ग्रेट डिप्रेशन से निकलने के लिए पूरी दुनिया केन्सियन इकोनॉमिक्स की दुहाई दे रही थी और फ्री मार्केट इकोनॉमी को कोस रही थी. ऐसे में एक नोबॉडी, विदेश से आए हुए फ्रेडरिक हायेक का LSE के घोर वामपंथी माहौल में रहकर केन्स के विश्वव्यापी सिद्धांतों को इंटेलेक्चुअल फोरम पर खुली चुनौती देना बौद्धिक दुस्साहस की मिसाल मानी जानी चाहिए.
दूसरे विश्वयुद्ध के बीच इंग्लैंड एक तरफ नाजीवाद और फासीवाद से लड़ रहा था, दूसरी तरफ कम्युनिस्ट रूस उसका मित्र राष्ट्र था…ऐसे में हायेक की पुस्तक “द रोड टू सर्फडम” 1944 में प्रकाशित हुई. विश्वयुद्ध के बीच इंग्लैंड के समाजवादी इंग्लैंड में युद्ध के बाद समाजवादी राज्य की स्थापना के स्वप्न देख रहे थे. ऐसे में हायेक ने यह सिद्ध कर के तहलका मचा दिया कि नाजीवाद और समाजवाद/कम्युनिज्म विरोधी नहीं, बिल्कुल जुड़वां विचारधाराएं हैं.
उनकी इस पुस्तक को आशातीत सफलता मिली इंग्लैंड से भी अधिक अमेरिका में, जहां वे आश्चर्यजनक रूप से एक सेलिब्रिटी बन कर उभरे. अपने जीवन का उत्तरार्ध उन्होंने अमेरिका में शिकागो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में बिताया जहां मिल्टन फ्रीडमैन और स्टिगलर जैसे इकोनॉमिस्ट के साथ मिलकर उन्होंने फ्री- मार्केट और फ्रीडम ऑफ थॉट्स के विचारों को जिन्दा रखा. आज यह अजीब लग सकता है कि उस दौर के इंटेलेक्चुअल वातावरण में ये विचार एक अपवाद थे और शीत युद्ध के दौर में दुनिया के सर्वाइवल के लिए बौद्धिक प्राण वायु थे.
हायेक के विचारों ने श्रीमति थैचर और राष्ट्रपति रेगन को बहुत अधिक प्रभावित किया. श्रीमती थैचर के हैंडबैग में हायेक की पुस्तक “द कांस्टीट्यूशन ऑफ लिबर्टी” हमेशा रहती थी, और एक पार्लियामेंट्री डिबेट में उन्होंने अपने बैग से निकल कर यह पुस्तक दिखाई और कहा – मैं इसमें विश्वास करती हूं.
अपने कालखंड की बौद्धिक धारा के विपरीत खड़े रहकर फ्रेडरिक हायेक ने ना सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि लाखों दूसरे इंटेलेक्चुअल को बौद्धिक जमीन दी और अगली पीढ़ी के फ्री थिंकर्स की पौध खड़ी की. उन्हें उनके सहकर्मियों और समकालीनों ने हमेशा कहा कि तुम गलत तरफ चले गए हो…हमारे साथ रहो तो फायदे में रहोगे. लेकिन हायेक ने अपनी लकीर खींची और उनसे बड़ी खींची और दुनिया का बौद्धिक और राजनीतिक इतिहास बदल दिया. उन्हें Intellectual’s intellectual कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
आज उनके जन्मदिन पर इस महान बौद्धिक योद्धा का सादर स्मरण…

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