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शाहरुख खान को बोलते हुए सुनिए…

by Rudra Pratap Dubey
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शाहरुख खान को बोलते हुए सुनिए, बेहद शानदार मोटिवेशनल स्पीकर हैं ..
लेकिन क्या फायदा ! किसी भी सलाह में मूल्य तभी आता है जब देने वाला खुद भी उसका पालन करे। अगर उसके अगल-बगल की जिंदगी उसके विचारों के उलट है, तो उन ‘बड़े विचारों’ का क्या फायदा। लोग आपके विचारों से नहीं, आपके जीवन से प्रभावित होते हैं क्योंकि आपका जीवन ही आपकी कथा कहता है, आपकी बातें नहीं।
कल शाम 9 बजे जब ये पता चला कि शाहरुख खान का लड़का आर्यन ड्रग्स मामले में गिरफ्तार हुआ है तो मेरे लिए ये चौकाने वाली खबर रही क्योंकि शाहरुख खान कहते रहे हैं कि उनके पिता ताज मोहम्मद खान एक स्वतंत्रता सेनानी थे, खुद शाहरुख खान पद्मश्री हैं लेकिन अगर उनका 24 साल का लड़का ड्रग्स मामले में गिरफ्तार हुआ है तो ये पूरे परिवार के लिए आत्मचिंतन का समय है।
शाहरुख खान आज जितने भी बड़े हों लेकिन परवरिश के मामले में आज वो अपने पिता से हार गए हैं। मैंने पहले भी लिखा था ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद व्यक्ति नकली होता जाता है। वो, जो ‘होता’ है, वो नहीं रहता और यहीं पर वो खुद को हारता जाता है। महात्मा गांधी से लेकर सुनील दत्त तक तमाम ऐसे बड़े लोगों की लिस्ट है तो पिता के तौर पर जगह-जगह ठोकरे खाते रहें।
आप शाहरुख़ खान की एक्टिंग देखिए, उस पर दिलीप कुमार और नसीरुद्दीन शाह का प्रभाव साफ नज़र आता है लेकिन जब उनसे उनके पसंदीदा अभिनेता का नाम पूछा जाता है तो वो मोतीलाल और बलराज साहनी का बताते हैं, ये जो ‘खुद से झूठ बोलने का स्वभाव’ होता है ये कब असलियत बन जाता है, वो पता भी नहीं चलता। शाहरुख खान के साथ पिछले कई सालों से यही होता जा रहा है। आखिरी 8 सालों में शाहरुख खान की फिल्में नहीं चली, उनका फैन बेस दूसरी जगह शिफ्ट हुआ, वो खुद फिल्मों से अलग हुए लेकिन वो समझ नहीं पाए, ऐसा क्यों हो रहा है। वो समझ ही नहीं पाए कि ‘उनका सिग्नेचर स्टेप’ अब एक पीढ़ी पुराना हो चुका है और उसकी लोकप्रियता अब नहीं रही।
स्थितियॉं तब खराब होती हैं जब आदमी खुद की जगह परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करता है। शाहरुख खान ने परिस्थितियां बदलने की ही लगातार कोशिश की, वो लगातार विदेशों की यूनिवर्सिटी में सम्मानित होते रहे, उन्हें डॉक्टरेट मिलती रही, वो फिल्मों से दूर रहकर भी व्यस्त रहे और फिर एक दिन खबर आती है कि उनका बेटा ड्रग्स मामले में हिरासत में हैं।
मुझे शाहरुख खान के लिए अफसोस है लेकिन इस बात पर भी अफसोस है कि उन्होंने लगातार झूठ बोला। उन्होंने वो नहीं कहा जो जाना था, उन्होंने वो कहा ‘जो अच्छा लग सके।’ उन्होंने देश के एक बड़े हिस्से को सपने देखने के लिए प्रेरित किया लेकिन अपने बेटे को उस प्यार को सम्हालने के लिए तैयार ना कर सके। अगर आदमी सिर्फ उतना बोले जितना उसने खुद भोगा या अपनाया हो तब उसके पास बोलने के लिए बहुत कम रह जाता है।
सच बात है कि अदाकार या लेखक को हमेशा उसकी कृतियों से ही जानना चाहिए क्योंकि उनको असल मे जानना एक तिलिस्म के टूटने जैसा होता है।
– रुद्र

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