1. यक्षरूपा में ब्रम्हा।
2. परशुराम के रूप में विष्णु।
3. पुरुष लिंग आकार में शिव।
श्री परशुरामेश्वर मंदिर –
गुड़ीमालम
जिला- चित्तूर
आंध्रप्रदेश
लगभग 2600 वर्ष पूर्व #देवेन्द्र_सिकरवार नामक तथाकथित वामी क्रिप्टोक्रिश्चियन ने जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावादियों और कुछ कट्टर झट्टर हिंदुओं को जलील करने के लिए इसे बनवाया होगा ताकि अपनी पुस्तक #इंदु_से_सिंधु में लिख सके–
“चूंकि पिशाच स्वच्छन्द योन वृत्ति के लोग थे अतः लिंग व योनि की सृजन प्रतीक के रूप में पूजा करते थे। किसने सोचा था उनकी यह पूजा ‘शिवलिंग पूजा’ के रूप में भारत ही नहीं विश्वव्यापी हो जाएगी।”
है ना?
अब जिस माई के लाल में और जिस साधु संत शंकराचार्य में ज्ञान का यह दंभ हो कि इस बात को गलत सिद्ध कर दे कि यह लिंग नहीं है, हिम्मत हो वह इस मंदिर को तोड़े और उन हिंदुओं को गाली दें जो इसे पूजते हैं और तब मैं अपनी पुस्तक में से यह पंक्तियां हटा लूँगा।
मैं जानता हूँ कि मैं घोर उद्दंडता प्रदर्शित कर रहा हूँ लेकिन चार महीने से ‘लिंगपूजा कहकर शिव का अपमान किया है’ आदि दुष्प्रचार कर, जन्मनाजातिवादियों की लगाई जिस आग में, मैं जल रहा हूँ और वह भी सत्य लिखने के कारण, उसकी आंच अब सभी तक पहुंचेगी।
भारत भर में बिखरे लिंग और योनि मन्दिरों की सविस्तार जानकारी एक एक करके आप तक पहुंचाता रहूंगा और जो ज्ञानी के जाए हैं वे इसे गलत साबित करें।
previous post