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वाल्मीकि रामायण सुन्दरकांड भाग 79

सुमंत विद्वांस

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रावण के महल में हर ओर खोजने पर भी जब सीता नहीं दिखाई दीं, तो हनुमान जी बहुत चिंतित हो गए। उनके मन में विचार आया कि ‘अवश्य ही सीता अब जीवित नहीं हैं। इस दुराचारी राक्षस ने उन्हें मारा डाला होगा। यहाँ की सभी राक्षस दासियाँ अत्यंत भीषण एवं विकराल हैं। भयभीत सीता ने उन्हें देखकर प्राण त्याग दिए होंगे।’
‘सीता को न खोज पाने के कारण मेरा यहाँ तक आना ही विफल हो गया। सुग्रीव ने हमें लौटने के लिए जो अवधि बताई थी, वह भी बीत चुकी है। अतः अब वहाँ जाने का मार्ग भी बंद हो गया है। अब वानर मुझसे पूछेंगे कि मैंने लंका जाकर क्या किया, तो मैं उन्हें क्या उत्तर दूँगा?’
ऐसा सोचते हुए वे निराश होने लगे किन्तु अगले ही क्षण उन्होंने फिर विचार किया कि ‘हताश न होकर उत्साह को सदा बनाए रखना ही सफलता का आधार है। अतः मुझे इस प्रकार निराश नहीं होना चाहिए। अब तक मैंने आपानशाला, पुष्पगृह, चित्रशाला, क्रीड़ागृह, पुष्पक विमान आदि में सीता को खोज लिया। अब अन्य स्थानों में भी मुझे खोज करनी चाहिए।’
यह निश्चय करके हनुमान जी नये उत्साह से आगे बढ़े। अब उन्होंने तहखानों में, परकोटे के भीतर की गलियों में, वृक्षों के नीचे बनी वेदियों में और यहाँ तक कि गड्ढों और पोखरों में भी खोजा। रावण के अन्तःपुर का ऐसा कोई स्थान नहीं बचा, जहाँ हनुमान जी ने सीता को न खोजा हो। फिर भी सीता उन्हें कहीं नहीं मिलीं।
तब वे वहाँ से निकलकर परकोटे पर चढ़ गए और बड़े वेग से इधर-उधर टहलते हुए कुछ सोचने लगे। उनके मन में विचार आया कि ‘सम्पाती ने तो यही बताया था कि सीता जी रावण के महल में हैं, किन्तु यहाँ तो वे कहीं भी दिखाई नहीं दे रहीं हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि जब रावण उनका अपहरण करके आकाशमार्ग से ला रहा था, तब वे रथ से नीचे गिर पड़ी हों या भीषण समुद्र को उतनी ऊँचाई से देखने पर भय के कारण उनके प्राण निकल गए हों अथवा क्रोधित रावण ने या उसकी पत्नियों में से किसी ने ईर्ष्या के कारण सीता जी को अपना आहार बना लिया हो?’
अब हनुमान जी को निश्चय हो गया कि अवश्य ही सीता जीवित नहीं हैं। तब उन्होंने सोचा कि ‘श्रीराम अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते हैं। उन्हें सीता की मृत्यु का समाचार नहीं देना चाहिए। उन्हें इससे अत्यंत दुःख होगा। लेकिन यदि न बताऊँ, तो भी उचित नहीं है। अब क्या किया जाए?’
‘अब तो मैं किष्किन्धा भी वापस नहीं जा सकता हूँ, ऐसे में क्या करूँ? अब या तो मैं वानप्रस्थी हो जाऊँगा अथवा जल-समाधि लेकर या अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दूँगा। लेकिन सीता का पता लगाये बिना मैं वापस नहीं लौटूँगा।’
यह सब सोचते-सोचते सहसा हनुमान जी ने सोचा कि ‘उधर एक बहुत बड़ी अशोक वाटिका है, जिसमें मैंने अभी तक सीता जी को खोजा ही नहीं। अब मुझे यहाँ भी ढूँढना चाहिए।’
यह सोचते ही हनुमान जी तुरंत खड़े हो गए और मन ही मन सभी देवताओं को नमस्कार करके अशोक वाटिका की ओर बढ़े और उसकी चारदीवारी पर चढ़ गए। वहाँ हनुमान जी को साल, अशोक, निम्ब, चम्पा, बहुवार, नागकेसर तथा आम आदि अनेक प्रकार के वृक्ष दिखाई दिए। कोयल आदि कई प्रकार के पक्षी वहाँ कलरव कर रहे थे।
सीता की खोज करते हुए हनुमान जी एक से दूसरे वृक्ष पर जाने लगे। उन वृक्षों के हिलने से फूल झड़ने लगे और वहाँ की पूरी भूमि फूलों से आच्छादित हो गई। वाटिका में हनुमान जी को अनेक सरोवर दिखाई दिये, जिनमें कमल खिले हुए थे और चक्रवाक, पपीहा, हंस और सारस कलरव कर रहे थे। अनेक नदियाँ उन सरोवरों को जल से भरा रखती थीं। वहाँ हनुमान जी ने बादल के समान काला और ऊँचे शिखर वाला एक पर्वत भी देखा, जिसकी चोटियाँ बड़ी विचित्र थीं। उसमें पत्थर की अनेक गुफाएँ थीं। उस पर्वत से एक नदी भी गिरती हुई दिखाई दे रही थी।
वहाँ शीतल जल से भरा हुआ एक कृत्रिम तालाब भी था, जिसमें श्रेष्ठ मणियों की सीढ़ियाँ बनी हुई थीं और उसमें रेत की जगह मोती भरे हुए थे। विश्वकर्मा के बनाए हुए बड़े-बड़े महल और कृत्रिम वन उसकी शोभा बढ़ा रहे थे।
फिर हनुमान जी ने एक अशोक का वृक्ष देखा, जो चारों ओर से स्वर्ण की वेदिकाओं से घिरा हुआ था। वे लपक कर उस वृक्ष पर चढ़ गए और उन्होंने सोचा कि ‘दुःख से व्याकुल होकर इधर-उधर घूमती हुई सीता अवश्य ही मुझे यहाँ से दिखाई देंगी। यह प्रातःकाल की पूजा का समय है, अतः अवश्य ही जानकी जी यहाँ जलाशय के तट पर आएँगी।’
यह सोचकर हनुमान जी उस ऊँचे वृक्ष पर बैठे-बैठे आस-पास का निरीक्षण करने लगे। वहाँ से थोड़ी ही दूर पर उन्हें एक ऊँचा गोलाकार मंदिर दिखाई दिया, जिसमें एक हजार खंभे लगे हुए थे। वह कैलास पर्वत के समान सफेद रंग था और उसमें मूँगे की सीढ़ियां व सोने की वेदियाँ बनाई गई थीं।
उस मंदिर को देखते-देखते उनकी दृष्टि एक सुन्दर स्त्री पर पड़ी, जो मैले वस्त्र पहने हुए थी और राक्षसियों से घिरी हुई थी। वह स्त्री अत्यंत दुर्बल और कातर दिखाई पड़ रही थी तथा बार-बार दुःख से सिसक रही थी। वह पीले रंग का एक पुराना रेशमी वस्त्र पहने हुए थी। अत्यंत शोक के कारण वह अत्यधिक क्षीण हो गई थी और दुःख के कारण उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी।
उसे देखकर हनुमान जी ने अनुमान लगाया कि अवश्य यही सीता है। तब इस अनुमान की पुष्टि करने के लिए उन्होंने उस स्त्री को ध्यान से देखा। सीता ने जो आभूषण वानरों के बीच गिराये थे, उन्हें देख लेने के बाद श्रीराम ने बताया था कि अब सीता के शरीर पर कौन-से आभूषण बचे होंगे। हनुमान जी ने अब उसी बात की ओर ध्यान दिया।
सुन्दर कुण्डल तथा कुत्ते के दाँतों जैसी आकृति वाले त्रिकर्ण नामक कर्णफूल उस स्त्री के कानों में सुशोभित थे। हाथों में मणि और मूँगे जड़े हुए कंगन थे। ये सब आभूषण ठीक वैसे ही थे, जैसा कि श्रीराम ने बताया था। यद्यपि बहुत दिनों से पहने होने के कारण वे कुछ काले पड़ गए थे किन्तु आकार-प्रकार से अभी भी वे पहचाने जा सकते थे।
इन सब प्रमाणों को देखकर हनुमान जी को विश्वास हो गया कि सीता जी यही हैं। उनकी वह अवस्था देखकर हनुमान जी दुःख से व्यथित हो गए, परन्तु उन्हें इस बात से प्रसन्नता भी हुई कि अंततः उन्होंने सीता जी को ढूँढ निकाला है।
अब वे विचार करने लगे कि जानकी जी के पास कैसे पहुँचा जाए।
(स्रोत: वाल्मीकि रामायण। सुन्दरकाण्ड। गीताप्रेस)
आगे जारी रहेगा…..

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