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भारत में यदि बौद्ध मत न आया होता तो

मधुलिका शची

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भारत में यदि बौद्ध मत न आया होता तो शायद मूर्ति कला और मंदिर निर्माण की उन्नत शैली का हमें कभी ज्ञान ही न होता और न ही शायद बड़ी बड़ी प्राचीरें होती…….
ऐसा लगता था जैसे भारत लकड़ियों के लकडकाल में ही खोया रहता। बौद्धों का भारत से बाहर भ्रमण करना भारत को यह बता गया कि बाहर की दुनिया में चल क्या रहा है ..?
अन्यथा हम तो देश से बाहर निकलने को ही अधर्म घोषित कर चुके थे ।
आज ग्लोबल कनेक्टिविटी है लेकिन भारत में अभी भी कूप मण्डूक वाली विचारधारा प्रभावी है बस अच्छा यह है कि नव युवा वर्ग जो समर्थ है वो इस विचारधारा को महत्व नहीं देता।
एक नया युवा वर्ग आया है जो यह बताने में लगा है कि भारत बहुत महान था अंग्रेजो ने सारी विद्या यहां से चुरा ली औऱ ऐसे कूपमंडूकता की बात करने वालों को सुनने पढ़ने वालो की संख्या बहुत अधिक है जिन्हें यह नहीं पता कि जो यहां हो रहा था वैसा ही कुछ विश्व के दूसरे हिस्से में भी हो रहा था पर कुछ चीज़ें यहां अलग थी तो कुछ वहां अलग।
हमारे मन्दिर तक पूर्णतः भारतीय शैली में नहीं हैं बल्कि मिश्रित शैली है भले ही पूर्व वामपंथी इतिहासकारों ने भारत को महान बताने के लिए नागर, बेसर, द्रविड़ शैली को पूर्णतः भारतीय बता दिया ।
अधिक क्या कहना बस इतना समझ लो कि जब विश्व से हम जुड़े तब बहुत कुछ सीखा हमने विश्व से और कुछ विश्व ने हमसे।
आपको क्या लगता है कि बौद्ध मत के सारे सिद्धान्त बुद्ध के हैं..? नहीं..! बल्कि 99% बुद्ध का नाम लगाकर वो ब्राह्मण बोल रहे हैं जो थक गए थे कूप मण्डूकता से, उलझे हुए कर्मकांड से। जो शोषित थे पुरोहितवाद की उस विचारधारा से जो हर बात में अधर्म खोज लेती थी। नये विचारों को प्रश्रय देने की जगह उनका पुराणों की कहानियाँ बनाकर दमन कर देती थी ।
वो खोज रहे थे एक नेतृत्व जिसके छांव तले वो अपनी तार्किक बुद्धि से निकले नए नए विचारों को , सूत्रों को फैला सकते और बुद्ध को आगे करके उन्होंने वही किया भी।
बौद्ध थ्योरी से मैथमैटिकल मेथड तक पहुंच ही रहे थे कि उनके अंदर भी अराजगता ने बहुत बड़ा स्थान बना लिया । जादू टोना , आत्महीनता , टकराव को ही अत्यधिक महत्व देने की उनकी प्रवृत्ति ने भारत को फिर हजारों साल की उसी खाईं में फेंक दिया जहां दार्शनिक विचारों की कमी तो नहीं थी पर उनका मैथमैटिकल फॉर्म अभी तक नहीं बन पाया।
भारत महान नहीं है, इसे महान बनाना है लेकिन कूप मण्डूकता की बुद्धि हमें बेबस जरूरतमन्द नकलची बनाकर छोड़ दी है ।
तुम्हारे सिद्धांतों का कोई महत्व नहीं है यदि प्रयोगशाला में उनकी महत्त्ता तुम खुद सिद्ध नहीं कर सकते । तुम्हारे सिद्धांत तब तक कुछ नहीं है जबतक कि वो कांसेप्ट से टूल तक की यात्रा न कर लें।
ज्ञान विश्व की धरोहर है किसी एक देश की नहीं, इसलिए पूरे विश्व के ज्ञान का कोई भी देश उपयोग कर सकता है। आपका उसपर आरोप लगाना खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे से अधिक कुछ नहीं है।
खैर, भारत की अधिकतर जनता स्वप्नराही है और उसे स्वप्नकाल की बातें ही पसंद है

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