शिवपुराण 2000 साल पहले के आस पास लिखी गई, जिसमें शिव को प्रथम स्वरूप दर्शाया गया है। शिव पहली बार निराकार रूप में ऊर्जा की एक बीम के रूप में प्रकट होते हैं, जिसका आदि और अनन्त ढूंढने ब्रह्मा और विष्णु अलग अलग छोर की ओर जाते हैं, किन्तु नाकाम रहते हैं। ब्रह्मा झूठ बोलते हैं कि उन्हें एनर्जी बीम का सोर्स मिल गया है। तभी बीम के भीतर से शिव साकार रूप में बाहर निकलते हैं।

शिवपुराण में एनर्जी बीम का जो वर्णन है उसमें बताया गया है कि बीम के भीतर तमाम ग्रह, तारामंडल और गैलेक्सियाँ बहुत तेजी से घूम रही हैं और आपस मे टकरा रही हैं। सम्पूर्ण ब्राह्मण शिव के भीतर ही बताया गया है। अतः अनन्त ब्रह्मांड की हर वस्तु, हर कण, हर एनर्जी शिव है। ब्रह्मांड के किसी भी कण को शिव का निराकार रूप मानकर आस्था जोड़ सकते हैं। ऐसी कोई शर्त नहीं है कि किसी शिवलिंग पर सांप, त्रिशूल, त्रिनेत्र, योनि, नंदी आदि हो तभी वो शिव हैं।

शिव एकमात्र ऐसे देवता है जो निराकार और साकार दोनों रूपों में विद्यमान हैं। साकार रूप में शिव मनुष्य जैसे दिखते हैं। शिव पुराण में शिव के निराकार रूप अर्थात एनर्जी बीम का वर्णन ठीक वैसा जी है, जैसा आधुनिक विज्ञान ब्रह्मांड के आकार की कल्पना करता है। लिंगाकार की एक एनर्जी बीम जिसके भीतर तमाम सितारे, तारा मण्डल और गैलेक्सियाँ घूम रही हैं।उपनिषदों में जिस ब्रह्मन को परमानंद बताया गया है वो शिव ही हैं।

चूंकि वेदों में देवों को प्रमुखता दी गई और शिव पुराण वैदिक काल के बाद पौराणिक काल मे लिखी गई, तो कुछ अति बुद्धिजीवी मानते है कि शिव का अस्तित्व की वैदिक काल के बाद शुरू होता है। शिव हमेशा से इन पृथ्वी पर रहने वाली मानव सभ्यता के इष्ट रहे हैं। सभ्यताएं नष्ट होती रही लेकिन शिव बार बार आते रहे।

भीम बेटका में त्रिशूल और सर्प धारण किए भगवान शिव का यह साकार रूप, 10,000 ईसा पूर्व प्राचीन आदिमानवों ने गुफाओ की दीवारों पर उकेरा था। अलग अलग समय काल और सभ्यताओं में शिव का स्वरूप अलग अलग रहा है। उन्हें किसी भी स्वरूप में पूजा जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया से लेकर एटलांटिक तक बर्फ का हर टुकड़ा, रेत का हर दाना, अनंत महासागरों की हर बूंद शिव है।

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