पँजाब के एक नवकरन की मौत का वामपंथी बाजार भाव : बात साल 2016 की है, एक बार फिर पढ़िए… क्रांति बहुत बेहतर तरीके से जानती है कि किस बेचारे इंसानी लहू से उसे बाजार में ईंधन मिलना है और किस इंसानी लहू के छीटों को क्रांति को करीने से अपने दामन से पोछ देना है। क्योंकि क्रांति की राह में एक इंसानी बलि का नाम है… नवकरन।
जी, पंजाब के संगरूर का रहने वाला 20 साल का दलित लड़का नवकरन एक ‘पेशेवर’ कम्युनिस्ट क्रांतिकारी बनने के लिए अक्टूबर 2013 में लुधियाना आकर नौजवान भारत सभा ज्वाइन करता है। अलग-अलग संगठनों में होलटाइमर कॉडर के तौर पर काम करते हुए बीती 23 तारीख को आत्महत्या कर लेता है। सुसाइड नोट में कारण निजी अवसाद और निराशा बताता है। जबकि उसका पिता मक्खन सिंह अपने लड़के की हत्या की आशंका जताता है।
यहां भी एक दलित होनहार लड़का दुख़द मौत मरता है लेकिन क्रांति का बाजारवाद देखिये : रोहित वेमुला की दुखद मौत की 18 तारीख के ठीक अगले दिन 19 तारीख को रंगीन पर्चे तैयार और पोस्ट कर क्रांति अपने काम पर होती हैं… तो अपने ही संगठन के कॉडर साथी नवकरन की 21 तारीख को आत्महत्या करने की सूचना देने में 1 फरवरी तक का समय लग जाता है..? फिर उसका सुसाइड नोट जारी किया जाता है। रस्मी सभा भी की जाती है।
हैदराबाद के अंबेडकरवादी छात्र आंदोलन से जुड़ाव रखने वाले विज्ञान के छात्र रोहित वेमुला के सामाजिक सरोकारी तेवर का अपहरण कर उसे 2013 आते-आते बाबा साहेब अंबेडकर के उसी संविधान से निकले अदालती फैसलों और व्यवस्थाओं के खिलाफ “एक अख़लाक़ के बदले हर घर से अख़लाक़” के पोस्टरों और बीफ़ व्यंजनों के आमंत्रण तक की हद का आत्मघाती जेहादी बना देने वाले गिरोहों की यह पेशेगत मजबूरी है कि वे अपनी निजी हताशा और निराशा से दुखद आत्महत्या कर बैठे रोहित की मौत को बेंचते रहें।
“रोहित वेमुला तुम्हारे शहीदी खून की स्याही क्रांति को रोशन रखेगी” के हांका लगाने वाले क्रांति के शेयर बाजारों के पेशेवर कारोबारियों को शायद बाजार भाव बेहतर पता होगा इंसानी मौतों का वर्ना जाति फैक्टर के साथ आत्महत्या तो नवकरन ने भी किया है गिरोहों के अपने कारकूनी रोजगारों और कामगारों के बीच।
खामोश लाल आत्म-‘हत्याओं’ की खामोश दुकानें। बोलती लाल मौतें, ऊँचे बाजार भाव पर।
पूँजीवाद हाय हाय……!