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भारत में टूरिस्ट प्लेस | प्रारब्ध

Author - Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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भारत में आप किसी भी टूरिस्ट प्लेस पर जाएँ – ऐसी जगह जहां विदेशी पर्यटक आते हैं. एक सामान्य दुकान, सामान्य दलाल, सामान्य दुकानदार और औसत जनता को लगता है गोरे बेवक़ूफ़ होते हैं. इन्हें लूट लिया जाए. प्रायः दो रेट रखे जाते हैं एक गोरों को बताने वाला और एक भारतीयों के लिए. दुकानदार क्या बोलें सरकारें स्वयं टूरिस्ट प्लेसों की एंट्री की टिकट के दो रेट रखती हैं. एक गोरी चमड़ी वालों के लिए और दूसरा भूरी चमड़ी वालों के लिए. गोरे अमीर होते हैं बेवक़ूफ़ होते हैं उनसे पैसे लूटने में समस्या नहीं. भूरी चमड़ी वाले गरीब और विद्वान होते हैं, इनसे पैसे की बात नहीं करनी.
हक़ीक़त में यह है कि वेस्टर्न वर्ल्ड विशेषकर अमेरिका पैसे से नहीं वैल्यू से चलता है. एक कुर्ता जिसकी वैल्यू उनकी निगाह में दो हज़ार है आप ऊनीस सौ का देंगे वह ख़ुशी ख़ुशी लेंगे. आपको लगेगा आपने उन्हें ठग लिया उन्हें लगेगा उन्हें सस्ता मिला है. भारत में हमें पैसे की वैल्यू सम्बंधित कॉन्सेप्ट सिखाया नहीं जाता. इधर हम सरकार पर निर्भर करते हैं mrp फ़िक्स करे. अमेरिका में कोई mrp नहीं. वही पानी की बोतल स्टोर में 25 cent की है तो वेण्डिंग मशीन में दो डालर की तो स्टेडियम में दस डालर की और स्टेडियम से बाहर पाँच डालर की. जहां जितनी वैल्यू रेट बाज़ार फ़िक्स करता है न कि सरकार. बचपन से बच्चों के दिमाग़ में रहता है छुट्टियों में मेहनत कर पैसे कमाना, पैसे की वैल्यू समझना और इन जेनरल चीजों की वैल्यू समझना.
यह वैल्यू फ़िक्स करना, पैसे की क़ीमत समझना, लेबर और हार्ड वर्क की वैल्यू समझना हमारे लिए एलियन है ( सोसल मीडिया में हम चाहे जो बोलें). मेरी बेटी हाई स्कूल में है. हमने बचपन से डिग्निटी ओफ़ लेबर, वैल्यू ओफ़ मनी समझाई. अभी उसका स्वयं का एक छोटा व्यवसाय है. व्यवसाय करने से उसे मालूम है मेहनत की क़ीमत, डिग्निटी ओफ़ लेबर, मनी मैनेजमेंट आदि. यह आधुनिक जीवन के सबसे महत्व पूर्ण लेसन है. 99% लोग पीठ पीछे और कुछ तो आमने सामने समझाते हैं अभी क्या ज़रूरत यह सब करने की. जब पैसे की ज़रूरत नहीं तो खामखवाह काम क्यों कर रही हो. घर वाले सक्षम हैं तो पढ़ाई करो ias अफ़सर बनो फ़िर कोई काम नहीं करना ऐश ही ऐश है.
ख़ास बात यह है कि यह बात समझाने वालों में ज़्यादातर लोग वही होते हैं जो स्वयं पैसे की समस्या से जूझ रहे होते हैं. जो स्वयं नौकरी कर रहे होते हैं पैसे के लिए, वह समझाते हैं कि पैसे के लिए व्यवसाय अभी से क्यों? क्या आवश्यकता है. प्रायः ऐसा समझाने वाले टीचर तक होते हैं. पढ़ाई करो, और पढ़ाई करो, नौकरी बिल्कुल टॉप की सरकारी करो जिसमें कुछ काम न करना हो. पूरी ज़िंदगी बग़ैर मेहनत, बग़ैर पैसे की वैल्यू समझे निपट जाएगी. मैं कितने ही लोगों को जानता हूँ जिन्होंने पूरी ज़िंदगी कोई मेहनत वाला कार्य नहीं किया और वह मेहनत करने वाले लोगों को बड़ी हेय दृष्टि से देखते हैं. ऐसे लोग इक्सेप्शन नहीं बल्कि चालीस पचास प्रतिशत हैं हमारे समाज में.
फ़ैक्ट यह है कि आधुनिक विश्व में मनी मैनेजमेंट, डिग्निटी ओफ़ लेबर, वैल्यू ओफ़ मनी जैसे विषय तो मोरल साइयन्स का हिस्सा होने चाहिए और बच्चों को बचपन से सिखाना चाहिए.

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