दिल्ली की सबसे मशहूर दरगाह है हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया। अभिषेक बच्चन से लेके रणबीर कपूर ने खूब गाने गाए है इनपे। औलिया अल्लाउद्दीन ख़िलजी काल में दिल्ली के घियासपुर में डेरा जमा कर टिके हुए थे। शेख़ फ़रीद के इतने मुरीद थे कि लोग औलिया से शेख़ फ़रीद की दुहाई देके कुछ भी काम करवा लेते थे। शेख़ फ़रीद से हुई तीन मुलाक़ातों में औलिया इतने खुश हुए कि अपने चेलों से कहते- फ़रीद्दुइन से मेरा रिश्ता “इश्क़ की जलती शमा “बराबर है।
ऐसा नहीं था औलिया को केवल ये “इश्क़” शेख़ फ़रीद से ही था। औलिया को ऐसा “प्रेम” अपने चेले अमीर खुसरो से भी था। इतना इश्क़ कि बजा फ़रमाते- ग़र बस चला तो हम दोनो एक कब्र में एक साथ सोएँगे। बाद में अमीर खुसरो को अपने आका औलिया के बग़ल में ही दफ़नाया गया। औलिया के चेले इतने थे कि दिल्ली में ही ढेरों मज़ार इन सब की है।
अल्लाउद्दीन ख़िलजी के बाद सत्ता की लड़ाई में मुबारक शाह ने खिजर खां को अंधा कर बंदी बनाया। खिजर खां औलिया का चेला था। इस बात से चिढ़ करके नए सुल्तान ने अपनी नयी इबादतगाह बनायी और औलिया को बैन कर दिया। नतीजा- मुबारक शाह का क़त्ल और तुग़लक़ वंश का उदय।
औलिया चिशती ऑर्डर के फ़ाउंडर थे – संगीत वाद्य के पूर्ण ख़िलाफ़ और करामात दिखाने के विरुद्ध। हर किसी को अपना चेला बनाने कर फ़रमान था। देश भर में यहीं से दरगाह ज़ियारत मज़ार बनने का सिलसिला शुरू हुआ और आज तक चल रहा है।
कून फाया कुंन !
शेष अगले भाग में —