Home लेखकMann Jee दरगाह भाग 4

दरगाह भाग 4

Mann Ji

by Mann Jee
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शेख़ अबु बकर तूसी हैदरी क़लंदरी रहमतुल्ला फ़ारस में पैदा हुए- इनको भी कुफ़्र मिटाने की तलब लगी। बलबन के राज्य काल के दौरान ये भी अपनी तशरीफ़ दिल्ली ले आए- फ़ारस में फाँकामस्ती कर रहे थे। दिल्ली में अपना ठिकाना बनाया – आज के प्रगति मैदान के धोरे।
एक बार इन कलंदर के पास एक बीमार आदमी आया जिसकी बीमारी ठीक ना होती थी- जनाब ने अपने मटके से पानी पिलाया । आदमी ठीक और दिल्ली में शोर हो गया। हर कोई अपनी मुरादें लिए मटका वाले पीर के पास आने लगा। मटकाधर अपने मटके में पानी में गुड़ घोल कर पिलाते- रूहानी ताक़तें साथ देती।
बलवन ने टेस्ट लेने की ठानी- एक ग़ुलाम लड़की तमीजन सिडूस करने भेजी। मटका वाले पीर ने उल्टे कनीज को सिडूस कर लिया- अपने बग़ल में दबा लिया। बल्बन ने फिर लोहे के गोले और मिट्टी भेजी- पीर ने कीमिया दिखाया- सोने में बदल दिया। अब हर कोई उन्हें मिट्टी चढ़ाने लगा। कुछ लालचि ख़ादिमों ने इन पीर साहब को मार डाला – उन्हें लगा सोने का भंडार है इस दरगाह के नीचे। कुछ ना मिला।
आज इस दरगाह पे जाने वाले मटका चढ़ाते है। इसी जगह से मटके वाली बड़े की बिरयानी ईजाद हुई। आज भी हियाँ ठेले पर मटकों में बिरयानी खाते मुरीद दिख जाएँगे।
निर्मल बाबा- लगता है आपने इन मटके वाले पीर से प्रेरणा ली है।

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