‘अग्निवीर’ फैसला सही है या गलत, यह तो भविष्य ही बताएगा। पर सोचने वाली बात है कि क्या यह सरकार का एकतरफा निर्णय है?
यह असफल ही होगा, यह ओपिनियन जिसकी भी है, वह क्या सेना, वायुसेना और नेवी से अधिक प्रायोगिक मेधा का धनी है?
क्या इन तीनों सेनाओं के सर्वोच्च ऑफिसरों, सेना प्रमुख, एयर चीफ और नेवल चीफ के परामर्श और रजामंदी के बाद यह निर्णय नहीं लिया गया है?
क्या इन तीनों सेनाओं के थिंक टैंक के विचारों को दरकिनार कर कुछेक लोगों की राय अधिक महत्व रखती है?
इंदिरा गांधी जैसी दृढ़निश्चयी और राजीव गांधी जैसे प्रचंड बहुमत की सरकारें भी सेना के एक अंग (तत्कालीन वायुसेना प्रमुख) की रजामंदी न मिलने पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ तक का पद सृजित नहीं कर पाई थी, तो क्या आज तीनों सेनाएं इतनी कमजोर हो चुकी हैं कि सरकार के फैसले को मानने को बाध्य हो जाएंगी? यकीनन नहीं।
सरकार पर भले न भरोसा कीजिए, कम से कम सेना को तो अपनी सीमित सोच के कारण कटघरे में खड़ा न कीजिए।