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बॉलीवुड समाज के सितारें गर्दिश में

ओम लवानिया 'प्रोफेसर'

by ओम लवानिया
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बॉलीवुडिया समाज के सितारें गर्दिश में चल रहे है, बड़े बड़े घराने की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुँह पड़ी है। इज्ज़त का कचरा हो चला है।

लाल सिंह के गम में ठीक से आंसू भी न बहाए थे। उधर, माइक टायसन उंगली कर दिए, उनसे लाइगर के बारे में पूछा गया, तो कहते है...कौन लाइगर? थोड़ा याद दिलाओ, फिर इंग्लिश में अपशब्द कहते है। 

सोचो जरा, 25 करोड़ लेने वाले को कैमियो अपीरियंस याद नहीं है उसके निर्माता-निर्देशक पर क्या बीत रही होगी। अंतर्राष्ट्रीय कचरा कर रहा है।

हालांकि करण जौहर और पुरी जगन्नाथ के बीच माइक टायसन पर आम सहमति न थी। फिर पुरी साहब ने धर्मा के मुखिया को विश्वास व उम्मीद दी, कि यह फ़िल्म नहीं है ऐतिहासिक पन्ना है। जिसे भारतीय सिनेमाई इतिहास अपने पृष्ठ में जोड़ेगा और गेस्ट सीक्वेंस कोई मामूली नहीं है, भविष्य में इसके इर्दगिर्द ट्यूटोरियल के रूप में काम लिया जाएगा।

लॉन्च गुरु चौड़े हो गए और टायसन को उठा लिए, उधर भाईसाहब 25 करोड़ लेकर साकीनाका कर रहा है। बताओ फ़िल्म तक याद नहीं है, अबे सैलरी में 500 रुपये का इन्क्रीमेंट लग जाए, तो महीने भर तक याद रखता है

25 करोड़ दिए है  कुछ तो शर्म कर लो बे…माना फ़िल्म तड़प रही है। इसका मतलब ये नहीं है करोडों रुपये भुला दोगे।

बिन माँ-बाप की औलाद व बिना कहानी की फिल्में ऐसे ही भटकती रहती है। चाहे कितने खर्चे कर लो।

 

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