Home मधुलिका यादव शची जीवन_के_आलोक
शायद, मैं उस समय क्लास eight में थी । ठंड का मौसम था , हमारे घर के बाहर सड़क पर ही एक महात्मा बैठे हुए ठिठुर रहे थे। उन्हें कहीं जाना था मगर ठंड के कारण हिम्मत नहीं हो पा रही थी।
रात का समय था और उसी समय मम्मी पेशेंट देखकर लौट ही रही थी तभी उन्होंने उस बाबा को ठिठुरते हुए देखा तो बोल पड़ी..
कहाँ जाना है ..?
क्या बात है..?
यहाँ घर के सामने क्यों बैठे हैं.?
बाबा की आवाज़ नहीं निकल पा रही थी तो मम्मी गॉर्ड से बोली देखो क्या बात है..?
गॉर्ड ने बात किया और बताये कि इन्हें संगम प्रयाग क्षेत्र जाना है मगर हिम्मत नहीं हो रही और टैक्सी भी इधर नहीं चल रही।
मम्मी कुछ देर तक सोची फिर बोली कि ठीक है अंदर आने को बोलो..
(नॉर्मली सिटी में कोई भी किसी को घर में नहीं ले जाता वो भी रात के समय क्योंकि किसी पर भी भरोसा करना खतरे से खाली नहीं होता,)
बाबा अंदर आने से मना कर रहे थे और बोल रहे थे कि मुझे किसी टैक्सी या रिक्शे पर बैठा दो मैं चला जाऊंगा..
पर उनकी स्थिति देखकर मम्मी ने अंदर आने को कहा। उन्हें हीटर के पास बैठाया गया और चाय दी गयी।
मम्मी बोली कि ..खाना खा लीजिये तो उन्होंने कहा खाना स्वयं से बनाकर खाते हैं इसका जीवन भर का व्रत लिए हैं इसलिए खाना नहीं खा पाएंगे ..
तो मम्मी ने उन्हें खाने को कुछ फल फूल दिया,
अब सुबह हुई तो सब्या मुझे बुलाने आ गया कि चलो देखो ..एक साधु बाबा आये हैं ,उनके खूब बड़े बड़े बाल है..!
कोई भी मेरे घर आते या सब्या के घर में आते थे तो हम दोनों बड़े ध्यान से बैठकर उनको एकटक देखा करते थे।
थोड़ी देर बाद मैं साधु बाबा से बोली; बाबा आप लोग भीख क्यों मांगते हो .?
आप लोग काम करके क्यों नहीं खाते..?
( बच्चे क्या बोलेंगे वही ना जो अपने अगल बगल महसूस कर रहे होते हैं, जो बातें उनके सामने होती हैं वही तो पूछेंगे )
सभू मुझसे बोला : पागल..!बाबा के पास पैसे नहीं है इसलिए माँगते हैं
मैं: नहीं पागल ,तुम नहीं जानते..बाबा जानते हैं..
मेरे इस प्रश्न पर सभी बाबा की ओर देखने लगे, दरअसल यह प्रश्न मेरा नहीं था बल्कि एकदिन एक डॉक्टर साहब हमारे घर पर बोल रहे थे कि मैं तो किसी को भी भीख नहीं देता, सब व्यापार बना के बैठे हैं।
साधु वेश में हैं लेकिन फिर भी हाथ फैला रहें हैं, शर्म नहीं आती, आखिर ये कैसी साधना है…?
पाखण्ड है यह,
जब मैं साधु बाबा से ऐसा पूछती हूँ तो वो डॉक्टर साहब भी वहां बैठे हुए थे और वो बड़े ध्यान से बाबा की ओर देखने लगे..
बाबा जैसे मेरे माध्यम से उन डॉक्टर साहब को ही उत्तर दे रहें हों…
” साधना है बच्ची “, यह भी एक साधना है.!
एक साधु को मान, सम्मान, अपमान से परे होना चाहिए
साधु जब भिक्षा मांगता है तो कोई उसे दुत्कारता है तो कोई सम्मान देता है …जो दुत्कार और सम्मान दोनों को ही एक समान समझ कर , बिना द्वेष , प्रेम लाये अपने मार्ग पर चलता रहे यूँ कहें तो ठीक गंगा की उस धारा की तरह बहता रहे जो क्या गंदगी ..! क्या शुद्धता ..!
सबको अपने में समेटे हुए स्वयं के जल की शुचिता बनाये हुए बहती रहती है और सबका कल्याण करती रहती है..
यही साधुत्व है ,यही साधु की साधना है और यही उसे साधु बनाता है। स्वयं को जीतने का एक मार्ग यह भी है..!
(ये बातें मुझे तो उस वक़्त नहीं समझ आयी पर मम्मी की डायरी में बहुत सालों बाद जब इसे पढ़ती हूँ तब जाकर यह बात समझ में आती है)
कल बस यूं ही एक साधु के भिक्षा माँगने पर यही याद आ गया,
कुछ मेरी डायरी के पन्नों से ,कुछ मम्मी की डायरी के पन्नों से :-

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