Home विषयइतिहास शंबूक_एवं_सीता_त्याग

सबसे पहले यह जान लीजिए कि ये घटनाएं वाल्मीकि रामायण में ही वर्णित नहीं हैं बल्कि एकाधिक रामायण, महाभारत एवं भवभूति रचित ‘उत्तर रामचरित’ में भी वर्णित हैं।
यों तो यह विषय प्राचीनकाल से ही विवाद का विषय रहा है लेकिन सीता त्याग से कहीं अधिक ‘शंबूक वध’ हिंदुओं को उद्वेलित करता आया है क्योंकि दलितोत्थान की दलित वैचारिकी में यह एक अत्यंत क्रूर कर्म एवं दलितों के प्रति अत्याचार के रूप में परिभाषित किया जाता है।
यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि दिन रात ब्राह्मणों को कोसने वाले दलित व प्रगतिशील बुद्धिजीवी यहाँ, इस कार्य के लिए विवश किये गए श्रीराम पर निशाना साधते हैं ताकि हिंदुत्व के श्रेष्ठतम प्रतीक को कलंकित किया जा सके।
इस संदर्भ में विद्वानों में दो मत प्रचलित हैं-
1) वनवासी राम शबरी के जूठे बेर भी खा सकते हैं लेकिन राजा राम कोसल की परंपराओं के रूप में चल रहे अलिखित संविधान को मानने के लिए अपनी शपथ के तहत बाध्य थे, चाहे वे उससे असहमत ही क्यों न हों।
यहाँ ध्यान रहे कि महाभारत में भीष्म पितामह ने विभिन्न राज्यों की प्रजाओं की प्रकृति की तुलना करते हुए कोसल की प्रजा को सबसे ज्यादा परंपरावादी बताया है।
2) पांच हजार वर्ष के बालक की अकाल बाल मृत्यु पर पिता ब्राह्मण का राजा राम को दोषी ठहराने जैसी अतार्किक घटना, भाषा, तर्क व प्रमाण की दृष्टि से यह ऐसा प्रसंग नजर आता है जिसे पूर्व मध्यकाल में जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावादियों ने जनता के ह्रदय में राम की ओट में रामायण में डाला गया अतः यह एक क्षेपक है जिसे मुगलों या ब्रिटिशों ने नहीं हमारे ही जन्मनाजातिवादियों ने मूल रामायण में घुसेड़ा था।
अब आपकी इच्छा है कि आप क्या चुनते हैं।
सीता त्याग पर फिर कभी…..

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