Home लेखक और लेखसतीश चंद्र मिश्रा इसे पत्रकारिता नहीं कहते हैं | प्रारब्ध

इसे पत्रकारिता नहीं कहते हैं | प्रारब्ध

Author - Satish Chandra Mishra

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सरकार के दस्तावेजों में यह सच्चाई दर्ज है कि भारत के मंदिरों से चोरी कर के विदेशों मे बेंच दी गयीं हिन्दू देवी देवताओं की सैकड़ों प्राचीन मूर्तियों में से केवल 13 मूर्तियां ही 1976 से 2013 तक की 37 वर्ष की समयावधि के दौरान भारत वापस लायी जा सकीं थी। लेकिन 2014 से लेकर अबतक की लगभग 8 वर्ष की समयावधि के दौरान मोदी सरकार 200 से अधिक मूर्तियों को वापस ला चुकी है। (देखें पहला कमेंट)
लेकिन न्यूज24 का रिपोर्टर राजीव रंजन आज इस कार्य इस उपलब्धि की सराहना करने के बजाए प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को कोसने में जुटा हुआ था और यह समझा रहा था कि कुछ माह पूर्व अमेरिका से वाराणसी वापस लायी गयी मां अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति को म्यूजियम में एक शोध छात्रा ने पहचाना और म्यूजियम के मालिकों को इस बारे में बताया तो म्यूजियम वालों ने वह मूर्ति भारतीय दूतावास को स्वयं वापस कर दी। लेकिन भारत में एक पार्टी और उसके नेता ने मूर्ति की शोभायात्राएं निकाल कर मूर्ति की वापसी का श्रेय लूटने का प्रयास किया, जबकि धर्म के नाम पर इस तरह राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
राजीव रंजन क्या इस सच्चाई को नहीं जानता है कि कोई विदेशी म्यूजियम किसी भी मूर्ति या कलाकृति का पूरा इतिहास जांचने परखने के बाद ही उस मूर्ति को महंगे दामों पर खरीद कर अपने म्यूजियम में स्थान देता है। इसके लिए उसे किसी शोध छात्र या छात्रा की आवश्यकता नहीं होती।
राजीव रंजन क्या उस अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम वालों को इतना मूर्ख समझता है कि वो मां अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति को भारत के बजाए इटली से लायी गयी मदर मेरी की मूर्ति समझ रहे थे.?
सच यह है कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भारत से चोरी कर के ले जायी गयी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों की वापसी का अभियान युद्धस्तर पर छेड़ रखा है। यही कारण है कि 2014 के बाद से 200 से अधिक मूर्तियां भारत वापस लायी गयी हैं.
लेकिन एक तथाकथित शोधछात्रा की कहानी गढ़ कर आज सुना रहा राजीव रंजन शर्मनाक उदाहरण है इस तथ्य का कि देश में पत्रकारिता के नाम पर केवल प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध जहर उगलने की सुपारी लेकर घूम रहे गिरोहों द्वारा पत्रकारिता के नाम पर जो कुछ किया जा रहा है उसे पत्रकारिता नहीं कहते हैं….
मां अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति वापसी पर देश भर में निकली शोभायात्राओं पर आज भी तिलमिला बिलबिला रहे राजीव रंजन की तिलमिलाहट बिलबिलाहट पर बस इतना ही कहूंगा कि हो सकता है कि राजीव रंजन कुंजड़ों, कसाइयों, कबाड़ियों की संगत में उनके साथ ही रहता हो इसलिए मां अन्नपूर्णा देवी के प्रति हिन्दूओं की आस्था श्रद्धा से वो परिचित नहीं हो। लेकिन यह उसका दोष है, उसकी खोटी सोच, दूषित मानसिकता का दोष है।
इस राजीव रंजन की यह पहली या अकेली ऐसी करतूत नहीं है।
इतिहास प्रसिद्ध हत्यारे डकैत औरंगज़ेब के चेले लफंगों द्वारा ज्ञानवापी में खुलेआम की जा रही गुंडई नंगई पर भाईचारे सेक्युलरिज्म की लीपापोती करने के लिए न्यूज24 का रिपोर्टर राजीव रंजन आजकल बनारस में ही मंडरा रहा है। क्योंकि कोई तथ्य तर्क उसके पास है नहीं इसलिए दहकते हुए सच पर भाईचारे, गंगा जमुनी तहजीब और सेक्युलरिज्म का पर्दा डालने में जुटा हुआ है।
इससे पहले यूपी चुनाव में भी 2-3;महीनों तक यह यूपी में मंडराया था और “माहौल क्या है” नाम के अपने कार्यक्रम के जरिए गांव-गांव तक जातिवाद का जहर फैलाने में जुटा हुआ था। लोगों से कौन जात हो पूछता था और फिर उन्हें याद दिलाता था कि मुख्यमंत्री योगी तो ठाकुर हैं, उन्हें वोट क्यों दोगे? उत्तरप्रदेश में सपा की सरकार बनने की प्रबल संभावनाओं की अफवाह यह तीन महीने तक फैलाने में जुटा रहा था। यूपी में इसकी उस साज़िश के मुंह पर जनता ने कितनी गहरी और गाढ़ी कालिख पोत दी यह सब जानते हैं।

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