Home लेखक और लेखअजीत सिंह हम भारतीय अपने बच्चों को खुद ही Sports नही कराते

हम भारतीय अपने बच्चों को खुद ही Sports नही कराते

by Ajit Singh
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हम भारतीय अपने बच्चों को खुद ही Sports नही कराते , फिर ताने भी मारते हैं कि 130 करोड़ लोगों के इस देश मे इतने कम ओलंपिक मैडल क्यों ????
उसपे एक मित्र ने कमेंट किया कि आपने तो किया न जिनगी भर Sports ….. क्या उखाड़ लिया ?????
देखो भैया , मैंने जिनगी भर सिर्फ Sports ही नही किया ….. और बहुत कुछ किया ।
मसलन 18 साल की उम्र में ही शास्त्रीय संगीत सुनने का चस्का लग गया था । सो जिनगी भर घूम घूम के Concerts सुने ।
80 – 90 – 2000 – और 2010 तक का एक भी मशहूर Classical Singer ऐसा नही जिसे मैंने रूबरू बैठ के न सुना हो ……इसके अलावा कैसेट खरीद के उसे बजाया और उसपे एक एक दिन में 18 – 18 घंटे Classical सुना ।
अब आप कहेंगे , क्या उखाड़ लिया इतना संगीत सुन के ?
उसी उम्र में साहित्य पढ़ने का शौक लग गया था ।
गज़ब दीवानगी थी पढ़ने की । दिन रात पढ़ते थे ।
इधर धीमी आवाज़ में राग दरबारी लगा लेते और दिन रात पढ़ते । एक किताब खत्म होते ही दूसरी उठा लेते ।
एक राग खत्म होता तो दूसरा लगा लेते ।
अब आप पूछेंगे क्या उखाड़ लिया इतना पढ़ के ?
लगभग उसी उम्र में घूमने का शौक लग गया था ।
जहां तक जा सके गए । हवाई जहाज से लगायित रेल बस ट्रक टेम्पो तांगा , AC 1 , AC 2 , AC 3 , सिलपर , जरनल , Pantry car , RMS , ब्रेक van , गार्ड का डिब्बा , रेल के इंजन , मालगाड़ी में , जरनल में जमीन पे सो के , सिलपर में संडास के बगल में सो के , लुंगी गमछा , अखबार जो मिला वही बिछा के , वो भी न मिला तो भुइयां सुत के ही travel किया , जरनल डिब्बे में जो ऊपर सामान रखने का होता है न , उसपे भी सो के गया हूँ , इसके अलावा रेल बस की छत पे सोता गया हूँ ….. Bullet 500cc पे एक दिन में 1000km राइडिंग किया ….. पहाड़ पे tent में सोया …..
यात्रा , घुमक्कड़ी करते आज 45 साल हो गए ।
देश भर में घूम के सबसे बेहतरीन भोजन खाया , सभी Cuisine enjoy किये , अपने हाथ से बना के यारों दोस्तों को खिलाया , खुद खा के उतना मज़ा नही आया जो अपने हाथ से बना के खिला के आया ……..
आप कहेंगे , क्या उखाड़ लिया इतना घूम के ????
क्या उखाड़ लिया इतना सारा भोजन खा के ????
भैया , ये जिनगी खेत मे लगी मूली नही है जिसे उखाड़ लिया जाये ।
मेरे लिये ये Sports , ये संगीत , ये साहित्य , ये घुमक्कड़ी , ये देश के कोने कोने में फैले दोस्त …… ये मेरी जीवन शैली है ….. यही मेरा जीवन है …..
बचपन में लगभग 10 – 12 साल पहलवानी की ….. उसका नशा आज तक तारी है जेहन में ….. आज भी सपने आते हैं ….. अभी भी अक्सर Mat पे कुश्ती लड़ने के सपने देखता हूँ …..
कल को यमराज के यहां हिसाब होगा तो चित्रगुप्त पूछेंगे , का का किये जीवन मे ?
पूरी story सुनाने में कई साल लगेंगे । बहुत मौज लिये हैं जीवन मे । बहुत फक्कड़ मस्ती किये हैं ।
Sports is a way of LIFE ……
यह एक जीवन शैली है ।
इसे जीवन चर्या बनाइये ।
Sportsman के सोचने का ढंग ही अलग होता है ।
Life के प्रति उसका attitude ही अलग होता है ।
जीवन मे हर चीज़ पैसे बनाने के लिये थोड़े न होती है ????
माना कि कुछ चीजों से रुपये कमाये जा सकते हैं ।
बहुत ज़्यादा रुपये ।
पर क्या ज़रूरी है कि हर चीज़ से पैसा ही कमाया जाए ????
वही काम कभी सिर्फ मज़े के लिये करके देखो न ?

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