रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में निर्देशक आनंद एल राय की रक्षाबंधन फ़िल्म देखी, शो की ऑक्यूपेंसी 70 प्रतिशत रही। अधिकतर भाई-बहन यानी फैमिली दर्शक थे।
इनमें दो फिरंगी यानी फॉरेन की महिलाएं भी रक्षाबंधन देखने आई हुई थी। मस्त खाने-पीने का पैकेज के साथ उपस्थिति दर्ज करवाई। पहले थियेटर वाले ने जितने विज्ञापन चलाने थे, चला लिए…उसके बाद अनुभव सिन्हा द्वारा निर्मित ‘मिडिल क्लास लव’ का त्रिकोणीय ट्रेलर दिखलाया।
फ़िल्म शुरू होने से पहले देश की शान तिरँगा और नेशनल एंथम शुरू होने का संकेत मिला, सभी खड़े हो गए। यह नजारा देखकर फिरंगी भी खड़ी हो गई और खत्म होने तक खड़ी रही। यह सीक्वेंस फ़िल्म से कहीँ ज़्यादा सुकून देने वाला था। भले उनके मन के भीतर कोई भी भाव रहे हो, समझ न आया हो। लेकिन सबको खड़ा देखकर, खड़ी हुई।
हमारे देश में एक कहावत बहुत मशहूर हुई और मौके तलाशकर बोली जाती रही है “सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में, किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है” ये फिरंगी महिलाएं उनसे कई गुना बेहतर है, जो इस शायरी के समर्थक व रहनुमा रहे है। नेशनल एंथम बज रहा है, उसके सम्मान में खड़े होना जरूरी नहीं समझते है। कई दृश्य देखने को मिले होंगे। बाकी हिंदुस्तान किसी के बाप का थोड़े ही है।
सुना है इनक्रेडिबल इंडिया के पूर्व ब्रांड एंबेसडर ने केबीसी में शिरकत की, और जांबाज आर्मी जवानों को मेडल के वक्त सैल्यूट करने की बारी आई। तब अमित जी और सभी ने सैल्यूट किया और वंदे मातरम नारे का उद्घोष किया। लेकिन 10 साल तक भारत का चेहरा रहे, ब्रांड एंबेसडर ने न सैल्यूट किया और न नारे में स्वर देना जरूरी समझा। तिस पर महाशय अपनी आगामी फिल्म में फ़ौजी के सेगमेंट को जीवंत कर रहे है। दिल में देश के लिए जज्बा नहीं है तो उस सेगमेंट में क्या अहसास दर्शकों की तरफ उछालोगें, आई एम भेरी सॉरी….इनके सामने तो दर्शक ही नगण्य रहे है।
ढोंग की कलाकारी पहले आसानी से चल जाती थी। लेकिन अब सोशल मीडिया जो है न, सब परतें खोलकर रख देती है। शेखू भैया ऑस्कर दिलवा रहे थे, अकेडमी अवॉर्ड ऑफ मेरिट वाले अवश्य देंगे। लेकिन नई कैटेगरी में ओरिजिनल कंटेंट के मूल को कैसे बर्बाद किया जाता है और साथ ही शोध करेंगे। 14 वर्षों तक कॉपी-पेस्ट में कैसे लग गए और इतने वक्त में भी ठंग से टीपना न हुआ। टॉम हैंक्स देख ले, तो यकीनन विल स्मिथ व क्रिस रॉक पार्ट 2 दर्शकों के बीच हो।