पढ़ाने से अधिक रील्स और वीडियो बनाने पर अधिक फोकस करने वाले शिक्षकों ने,बच्चों को उत्पाद की तरह प्रयोग करना आरंभ कर दिया है,बच्चे को सही संस्कार सिखाने की जगह ये सब उसके साथ किया जा रहा है,पीछे खड़े बच्चों के मन में हीन भावना के भाव जन्म लेते आप महसूस कर सकते हैं।क्यूटनेस और aww वाले लाइक्स पाने के उद्देश्य से,अभिभावक और शिक्षक दोनों ने बच्चों को कितने प्रकार के मानसिक रोग दिए हैं,कहूंगा तो लोग कहेंगे माता पिता बुरे नहीं होते,ये ही बच्चे आगे चल वो करते हैं,(जो उन्हें बचपन में गलत नहीं लगता),तो उनके ही अभिभावक और शिक्षक कहते हैं,नहीं नहीं वो ऐसा नहीं कर सकता,वो तो ऐसा नहीं था,शिक्षा हो या लालन पालन इसमें ग्लैमर और फेमस होने के मोह ने(जो बॉलीवुड और रियलिटी शो की देन है) 5 साल के बच्चों को पढ़ने की जगह बॉलीवुड डांस मूव्स वाले स्कूलों में धकेल दिया है,बच्चा पढ़ने में भी अच्छा चाहिए,उससे अधिक वीडियो में उसके लाइक्स आने चाहिए,बच्चों से ऐसी हरकतें करवाना,ऐसे डांस मूव्स करवाना,जो बड़े देखें तो शर्मा जाएं,मानसिक दिवालियापन नहीं तो क्या है?
इनसे 1000 गुना अच्छे थे हमारे समय के शिक्षक और अभिभावक जो,समझाने से शुरू कर,ना समझने पर डांट और दंड दे कर,सही और गलत के बीच का फर्क समझाते थे,किस से कैसा व्यवहार करना है वो बतलाते थे,तब हमें वो बुरे लगते थे,पर अब समझ आता है कि वो कितने सही थे और उनका तरीका कितना सही था।