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ऑस्ट्रेलिया में दुनिया भर के बहुत देशों के लोग रहते हैं

Vivek Umrao

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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ऑस्ट्रेलिया में दुनिया भर के बहुत देशों के लोग रहते हैं।अमेरिका से यूरोप के विभिन्न विकसित देशों से आए बहुत लोग रहते हैं। प्रतिवर्ष हजारों छात्र अमेरिका से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए ऑस्ट्रेलिया आते हैं। अमेरिका हो या दुनिया का कोई भी दूसरा विकसित देश, वहां का होना या वहां से आना, भोकाल नहीं होता, विशिष्टता नहीं होती, सुपीरियरिटी नहीं होती, खुद को विशिष्ट मानने की या अलग मानने की मानसिकता नहीं होती, दृश्य/अदृश्य अहम नहीं होता।
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किसी का आधा परिवार यहां है तो आधा परिवार अमेरिका या योरप में। या किसी की आधी परवरिश यहां हुई है तो आधी परवरिश अमेरिका या योरप में। कोई कई सालों तक अमेरिका या योरप में रहकर वहां पढ़कर वहां नौकरी करके यहां आया तो कोई यहां नौकरी करके वहां गया। किसी का जीवनसाथी अमेरिका या योरप से है या अफ्रीका से है या एशिया से है, अलग-अलग धर्मों के लोग जीवनसाथी होते हैं। कुल जनसंख्या का एक बहुत बड़ा प्रतिशत एक से अधिक देशों के नागरिक हैं, एक से अधिक देशों मे मतदान कर सकते हैं, जनप्रतिनिधि चुन सकते हैं, कई देशों में संपत्तियां रखते हैं।
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आदि के ही अपने सगे ममेरे व मौसरे भाई-बहनों में से कई हैं जिनके पास दो-दो देशों के पासपोर्ट हैं।
हम लोग कैनबरा में जिस घर में रहते हैं, वहां कई प्रोफेसर (असली वाले), कई ऊंचे नौकरशाह रहते हैं। एक पड़ोसी ऐसे हैं जिनका लगभग पूरा परिवार अमेरिका में रहता है, परिवार से एक दो लोग ही ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। बच्चों के स्कूलों की वार्षिक छुट्टियों में एक-डेढ़ महीनों के लिए अमेरिका ऑस्ट्रेलिया आना-जाना होता रहता है।
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हम लोग चार सालों से पड़ोसी हैं, लेकिन क दूसरे के घर मुश्किल से दो तीन बार ही गए होंगे। आते जाते जब कभी देखा-दूखी हो जाती है तो हाय हेलो हो जाती है। घनिष्ठ मित्रता जैसा कतई नहीं है।
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फिर भी जब वे अमेरिका या लंबी छुट्टियों में जाते हैं तो अपने घर व कारों की चाबियां हम लोगों को दे जाते हैं। घर के कमरों में ताले नहीं लगते हैं, अलमारियों में ताले नहीं लगते हैं। घर के बाहरी दरवाजे का ताला खुलते ही पूरा घर खुल गया, सारा सामान आपके सामने। लेकिन अपने घर व कारों की चाबियां देकर जाते हैं। किसी आपातकाल के लिए।
जैसे आदमियों के लिए होटल होते हैं, वैसे ही यहां कुत्ते बिल्लियों के लिए होटल होते हैं। जब आप लंबी छुट्टियों में जाते हैं तो आपके सामने दो विकल्प होते हैं, एक अपनी बिल्ली को या तो किसी बिल्ली-होटल में छोड़िए या किसी को अपने घर में बिल्ली की देखभाल करने आने के लिए हायर कीजिए। यदि रेट की बात की जाए तो बिल्ली-होटल सस्ता पड़ता है। लेकिन चूंकि बिल्ली घर की होती है इसलिए उसे बिल्ली-होटल में छोड़ने का मतलब, उसे असहज करना व घर से डिटैचमेंट महसूस कराना।
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इसलिए हम लोग अपनी बिल्ली को बिल्ली-होटल में नहीं छोड़ते हैं। देखभाल करने वाले को घर आने के लिए हायर करते हैं। इनका रेट ढाई-तीन हजार रुपए प्रतिघंटा होता है। मान लीजिए आपने इनको दो घंटे रोज के हिसाब से पांच दिनों के लिए हायर किया तो लगभग 25-30 हजार रुपए हो गया, बिल्ली का भोजन का खर्च हम लोगों का अलग से।
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हम लोग इन लोगों से कभी मिले नहीं होते हैं। लेकिन अपने घर की चाबी इनको देकर जाते हैं। घर के किसी कमरे में ताला नहीं है, किसी अलमारी में ताला नहीं, कोई संदूक नहीं ताला नहीं। सबकुछ खुला। फिर भी एक सुई गायब नहीं होती, सुई गायब होना तो दूर, एक भी सामान छुआ तक नहीं जाता।
मेरे अपने माता पिता ने मुझे कभी घर की चाबी नहीं दी। जबकि घर में हर कमरे में ताले जड़े होते हैं, एक-एक दरवाजे पर कई-कई ताले। मैंने कभी चोरी नहीं की, कहीं भी चोरी नहीं की, किसी को धोखा नहीं दिया, शोषण नहीं किया। मैं कभी समझ नहीं पाया कि आखिर मैं अपने माता पिता के घर से क्या चोरी कर लूंगा। मैं घर में होता था तब भी कमरों में ताले बंद होते थे, केवल जिस कमरे में मैं रहता था उस कमरे को छोड़।
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वहीं सत्रह साल पहले जब मैं पहली बार सासू-माता के घर आया, तब मुझे उनके जितने भी घर थे उनकी चाबी दे दी गई, मैं वहां रहता होऊं या न रहता होऊं, मुझे वहां जाना हो या न हो। पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए, इसलिए चाबियां दी गईं। आज भी मेरे पास चाबी रहती है। जब भी उनके पास जाता हूं, वे पक्का जरूर करतीं हैं कि मेरे पास चाबी है या नहीं। करोड़ों रुपए का सामान यूं ही पड़ा रहता है, एक सामान नहीं छुआ गया होगा।
अनजान लोगों को घर की चाबी दे दी जाती है, घर के अंदर कहीं ताला नहीं लगता है। केवल हल्के-फुल्के जान-पहचान वाले पड़ोसियों को घर की चाबी दे दी जाती है। ऐसा नहीं है कि ऐसा हमारे साथ ही होता है। यह यहां के अधिकतर लोगों की जीवन-शैली है। ऐसा नहीं है कि चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात रहती है, बल्कि पुलिस तो कहीं दिखती ही नहीं है, महीनों हो जाते हैं पुलिस को देखे हुए।
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समाज के अधिकतर लोगों में बहुत अधिक आर्थिक विषमता नहीं है। लोगों के साथ भेदभाव नहीं होता है। जीवन मूल्यों को जीना महानता नहीं माना जाता है, बल्कि मनुष्य होने की सरलता मानी जाती है। संस्कार व संस्कृति की महानता के नाम पर कर्मकांड नहीं होते हैं, व्याख्यान नहीं होते हैं, जैकारे नहीं लगते हैं। संस्कारित करने के नाम पर बचपन से मारपीट नहीं होती है। ढोंग नहीं होता है, कथनी करनी में अंतर नहीं होता है।
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अपराध दुनिया के हर समाज में होते हैं। बात यह है कि समाज के अधिकतर प्रतिशत लोगों में सामाजिक विश्वास है या नहीं। समाज है तो सामाजिक विश्वास तो होना ही चाहिए। यदि कोई समाज इस स्तर का प्रमाणिकता के साथ जीने वाला सामाजिक विश्वास नहीं विकसित कर पाया है तो वह समाज संस्कारवान संस्कृतिशील नहीं कहा जा सकता है।

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