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आर्मी में 2002 में ऑप पराक्रम

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आर्मी में 2002 में ऑप पराक्रम के समय जिस आर्मर्ड रेजिमेंट का आरएमओ था, उसके CO से मैंने एक बार कैज़ुअल्टी एवकूएशन और एम्बुलेंस वगैरह पर बात की तो उन्होंने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही … डॉक्टर! तुम्हें जो चाहिए वह बता दो, मिल जाएगा. पर यह बात याद रखो, जब सचमुच की लड़ाई होगी तो तुम किसी को भी एवकूएट नहीं कर पाओगे. अगर ये टैंक हिट होंगे तो कुछ बचेगा ही नहीं जो तुम एवकूएट करोगे. हमारे बन्दों को सिर्फ एक चीज बचाएगी… विक्ट्री. तुम्हारा रोल सिर्फ एक ही है, अपने बन्दों का मोराल ऊँचा रखना.. कि उनके लिए एक डॉक्टर भी है. पर आर्मी का ऑब्जेक्टिव है लड़ाई जीतना. तुम्हारा ऑब्जेक्ट है डॉक्टरी. तुम्हारा ऑब्जेक्टिव आर्मी का ऑब्जेक्टिव नहीं हो सकता. तुम्हें ही अपना ऑब्जेक्टिव बदलना होगा, कि तुम्हारी डॉक्टरी लड़ाई जीतने में कैसे मदद कर सकती है.

 

यह बात बिल्कुल सही लगी… गाड़ी को घोड़े के आगे नहीं खड़ा किया जा सकता. एक नॉन-मेडिकल आर्गेनाईजेशन में डॉक्टर को अपने ऑब्जेक्टिव को आर्गेनाईजेशन के ऑब्जेक्टिव से एडजस्ट करना पड़ता है. फिर जब बाहर आकर जमशेदपुर में एक मिशन हॉस्पिटल जॉइन किया तो थोड़े दिन बाद यही बात समझ में आई… हॉस्पिटल है चर्च की संपत्ति, चर्च का ऑब्जेक्टिव है धर्मान्तरण. तो हॉस्पिटल का रोल है इस धर्मान्तरण में मदद करना. मरीज को जो भी हेल्थ केअर मिलता है, वह इंसिडेंटल है. फिर टाटा का हॉस्पिटल जॉइन किया तो यही बात दिखाई दी…टाटा कम्पनी का काम है स्टील बनाना. हॉस्पिटल का काम है वर्कर को खुश रखना जिससे वह मन लगाकर स्टील बनाये. उसके परिवार को मुफ्त हेल्थकेयर मिले तो वह कम्पनी छोड़कर कहीं और जाने की ना सोचे और कम्पनी को सैलरी न बढ़ानी पड़े. तो डॉक्टर का काम एम्प्लॉई को और विशेषकर यूनियन को खुश करना है.

 

 

सोचा, अगर एक विशुद्ध हेल्थ केअर सिस्टम में काम करूंगा तो वहाँ डॉक्टरी पहली प्राथमिकता होगी. तो जब एनएचएस जॉइन किया तो कुछ बातें बहुत इम्प्रेसिव लगीं. पर जैसे जैसे एनएचएस को बेहतर समझता गया, यह दिखता गया कि 90% काम जो हम करते हैं वह गैरजरूरी और ब्यूरोक्रेटिक है. फिर एनएचएस के मूल चरित्र को पुराने सिद्धान्त पर परख कर समझना शुरू किया तो यह बात समझ में आई – एनएचएस मूल रूप से एक पॉलिटिकल आर्गेनाईजेशन है. इसका एक पॉलिटिकल गोल है और वह है पॉलिटिशियन्स को पॉवर में रखना और पब्लिक को सरकार पर डिपेंडेन्ट रखना. तो इंग्लैंड का हेल्थकेयर यहाँ के एक विकसित और स्वतंत्र हेल्थकेयर सिस्टम को जबरन मार कर बना है. यह एक फेबियन विचार और एक लेबर वामपन्थी पहल की उपज है. आज पूरा देश इसपर बुरी तरह आश्रित है. नतीजा कि लोग छोटी छोटी बातों के लिए हॉस्पिटल पहुँच जाते हैं जिनके लिए हॉस्पिटल जाने की बात पर आप हँसें. खेलता हुआ बच्चा गिर जाता है और घुटने जरा से छिल जाते हैं या सर पर थोड़ा गूमड़ निकल आये तो फटाफट एक्सरे और स्कैनिंग होने लगती है. लिखने वाला डॉक्टर और कराने वाला मरीज दोनों जानते हैं कि बकवास हो रही है, लेकिन मुफ्त में हो रहा है, क्या फर्क पड़ता है. और उस छोटी सी चीज के लिए वे 4-6 घण्टे मजे में वेट करते हैं. वहीं एक किडनी या गॉल ब्लैडर की पथरी के लिए मजे में 6-8 महीने की वेटिंग लिस्ट होती है. चर्मरोग या साइकाइट्री के मरीज तो साल-डेढ़ साल इंतजार करते हैं अपॉइंटमेंट का. क्योंकि यह मुफ्त है तो आप इसकी कीमत किसी और रूप में चुकाते हैं और कोई दूसरा ऑप्शन है नहीं तो किसी और चीज से तुलना भी नहीं कर सकते. दिन पर दिन एनएचएस देश के लिए महँगा और इनएफिशिएंट होता जा रहा है और एक पीढ़ी में इंग्लैंड की इकोनॉमी इसके बोझ तले दब कर दम तोड़ देगी.

 

 

पर एनएचएस की अपनी उपयोगिता है… यह वेलफेयर स्टेट का सबसे बड़ा एक्सक्यूज़ है. इसके बहाने से सरकार 40% टैक्स और उसके बाद 12% नेशनल इन्शुरन्स काटती है. इसके बहाने से सरकार माध्यम वर्ग को सम्पन्न होने रोकती है और निम्नवर्ग को आत्मनिर्भर होने से. एनएचएस देश को गुलाम और शासकों के लिए सत्ता को सुगम बनाता है. जो लोग शिक्षा और स्वास्थ्य को राज्य की जिम्मेदारी समझते हैं, वे यह नहीं समझते कि वे अपने हाथ से अपनी आर्थिक स्वतंत्रता का गला घोंट रहे हैं, गले में फन्दा डालकर शासकों को रस्सी पकड़ा रहे हैं.

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